Friday, October 30, 2015

“करवा चौथ” के व्रत का सही अर्थ क्या हैं ?,Real meaning of karwa chauth in hindi

“करवा चौथ” के व्रत का सही अर्थ क्या हैं ?

धर्म की जिज्ञासा वाले के लिए वेद ही परम प्रमाण है ,अतः हमें वेद में ही देखना चाहिए कि वेद का इस विषय में क्या आदेश है ? वेद का आदेश है—-
व्रतं कृणुत !  ( यजुर्वेद  ४-११ )
व्रत करो , व्रत रखो , व्रत का पालन करो
ऐसा वेद का स्पष्ट आदेश है ,परन्तु कैसे व्रत करें ? वेद का व्रत से क्या तात्पर्य है ? वेद अपने अर्थों को स्वयं प्रकट करता है..वेद में व्रत का अर्थ है—-
अग्ने व्रतपते व्रतं चरिष्यामि तच्छ्केयं तन्मे राध्यतां इदमहमनृतात् सत्यमुपैमि  !!   ( यजुर्वेद  १–५ )
हे व्रतों के पालक प्रभो ! मैं व्रत धारण करूँगा , मैं उसे पूरा कर सकूँ , आप मुझे ऐसी शक्ति प्रदान करें… मेरा व्रत है—-मैं असत्य को छोड़कर सत्य को ग्रहण करता रहूँ
इस मन्त्र से स्पष्ट है कि वेद के अनुसार किसी बुराई को छोड़कर भलाई को ग्रहण करने का नाम व्रत है..शरीर को सुखाने का , रात्रि के १२ बजे तक भूखे मरने का नाम व्रत नहीं है..चारों वेदों में एक भी ऐसा मन्त्र नहीं मिलेगा जिसमे ऐसा विधान हो कि एकादशी , पूर्णमासी या करवा चौथ आदि का व्रत रखना चाहिए और ऐसा करने से पति की आयु बढ़ जायेगी … हाँ , व्रतों के करने से आयु घटेगी ऐसा मनुस्मृति में लिखा है
पत्यौ जीवति तु या स्त्री उपवासव्रतं चरेत्  !
आयुष्यं बाधते भर्तुर्नरकं चैव गच्छति  !!
जो पति के जीवित रहते भूखा मरनेवाला व्रत करती है वह पति की आयु को कम करती है और मर कर नरक में जाती है …
अब देखें आचार्य चाणक्य क्या कहते है —
पत्युराज्ञां विना नारी उपोष्य व्रतचारिणी  !
आयुष्यं हरते भर्तुः सा नारी नरकं व्रजेत्  !!    ( चाणक्य नीति – १७–९ )
जो स्त्री पति की आज्ञा के बिना भूखों मरनेवाला व्रत रखती है , वह पति की आयु घटाती है और स्वयं महान कष्ट भोगती है …
अब कबीर के शब्द भी देखें —
राम नाम को छाडिके राखै करवा चौथि !
सो तो हवैगी सूकरी तिन्है राम सो कौथि !!
जो इश्वर के नाम को छोड़कर करवा चौथ का व्रत रखती है , वह मरकर सूकरी बनेगी
ज़रा विचार करें , एक तो व्रत करना और उसके परिणाम स्वरुप फिर दंड भोगना , यह कहाँ की बुद्धिमत्ता है ? अतः इस तर्कशून्य , अशास्त्रीय , वेदविरुद्ध करवा चौथ की प्रथा का परित्याग कर सच्चे व्रतों को अपने जीवन में धारण करते हुए अपने जीवन को सफल बनाने का उद्योग करों
— साभार :- स्वामी जगदीश्वरानन्द सरस्वती कृत ” विद्यार्थी लेखावली “

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